तुमसे कुछ रिश्ता था
शायद इतना ही
नयनों के अबोले
शब्दों का छू जाना
कोरे कागज में
रंगो का भर जाना
बर्फीले तन में
स्पंदन कम्पन का
पल को ठहर जाना
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उदास उदास शाम है
गुदगुदा दो उसे कोई
रुंआसी रुंआसी लहरें
रो न दें हंसा दो कोई
हवा को क्या हुआ
खामोश है ठहरी हुई
चंचल किरण छु दो इसे
चले खिलखिलाती हुई
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